दिव्य प्रकाश दुबे हिंदी लेखन के उन उभरते हस्ताक्षरों में से हैं जो अपनी हर नई पुस्तक से साथ और भी बेहतर होते चले गए. हिंदीजंक्शन के साथ वार्तालाप के आधार पर प्रस्तुत है उनके साक्षात्कार का शब्दशः संस्करण.
हिंदीजंक्शन : आपके पाठक आपको भली-भांति जानने लगे हैं, इसलिए परिचय बताना औपचारिकता होगी. परन्तु खुद से जुड़ी कोई अन्य बात जो उन परिचय पन्नों पर नहीं है?
दिव्य प्रकाश : मैं कहाँ पढ़ा, कहाँ नौकरी करता हूँ, दिखता कैसा हूँ और बोलता कैसा हूँ – ये बहुत लोगों को पता ही है ! नहीं पता है तो ये बात कि हर बार जब मैं कम्प्युटर के सामने बैठता हूँ तो लिखना ऐसे अटैम्प्ट करता हूँ जैसे कोई चीज पहली बार करने जा रहा हूँ. मैं ठीक वैसे ही struggle करता हूँ जैसे कोई बच्चा पहली बार चलने से पहले करता है. जैसे कोई पहली बार साइकल चलाना सीख रहा हो. आप कह सकते हैं अपनी हर नयी कहानी को नया दिव्य प्रकाश ही लिखता है जो कि ये baggage carry नहीं करता कि उसने तीन किताबें लिख ली हैं.
हिंदीजंक्शन : लोग प्रोत्साहन के बाद कुछ अच्छा करते हैं. परन्तु आपने हतोत्साहित करने पर तीर मार दिया जो निशाने पर लगा! इनमे सर्वोपरि ‘शर्मा जी’ के अलावा और कौन-कितने थे? (संदर्भ : TEDx में आपके द्वारा साझा की गयी बातें)
दिव्य प्रकाश : बहुत सारे लोग थे. उन सब लोगों को मिलकर मैंने एक नाम दे दिया है – फलाने अंकल. अंकल को मैंने बस कहानी की तरह इस्तेमाल किया है. अंकल न भी बोलते तो भी मैं वही करता जो करना था, बस उन्होंने बोलकर सफर थोड़ा आसान कर दिया.
हिंदीजंक्शन : हिंदी का लेखक अब मोटे चश्मा वाला, दाहिने कंधे पर झोला लटकाए उलझे बालों वाला शिथील व्यक्तित्व नहीं है जो घर्घरायी आवाज़ में ही बात करे. और कौन-कौन से पूर्वाग्रह हैं जो अब समाप्त हो जाने चाहिए?
दिव्य प्रकाश : पहला तो ये कि आप लेखक हैं तो आपकी दुनिया की हर चीज के बारे में एक एक्सपेर्ट ओपिनियन होगी. दूसरा ये कि अगर प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहे हैं एमबीए इंजीन्यरिंग किए हुए हैं तो आपकी sensitivity वैसी नहीं होगी जो कि किसी कॉलेज के हिन्दी के प्रोफेसर साहब की होती है.
हिंदीजंक्शन : आपकी पहली पुस्तक में आपका परिचय कुछ यूं था – ‘DP एक लेखक है जो मार्केटिंग भी कर लेते हैं … बाकियों का मानना है कि एक अच्छे मार्केटिंग मैनेजर हैं जो लिख भी लेते हैं. तीन सफल पुस्तकों के पश्चात पलड़ा कुछ इधर-उधर हुआ है या अब भी वही है?
दिव्य प्रकाश : कहानियाँ सुना भी ठीक ठाक लेता हूँ, ये डिस्कवरी हुई है. ये मुझे भी नहीं पता था. बस एक चीज जोड़ना चाहूँगा कि हमारी आज कल की लाइफ में multiple screen distraction (मोबाइल, लैपटाप, डेस्कटॉप, टैब इत्यादि) हैं. इस बीच में लिखने का समय निकालना वो भी अपनी लाइफ बिना कॉम्प्रोमाइज़ किए. उसके लिए आदमी को लेखक होने से पहले अच्छा टाइम मैनेजमेंट आना ही चाहिए.
हिंदीजंक्शन : आपको पहला ‘हिंगलिश’ लेखक का श्रेय प्राप्त है. ऐसा तो नहीं कि यह हेय दृष्टि से देखा जाने वाला एक तमगा मात्र है?
दिव्य प्रकाश : हेय दृष्टि किसी की भी नहीं है. हेय देखना अपने आप में बहुत नेगेटिव टर्म है. बल्कि मुझे बहुत सारे कॉलेज से कहानी सुनाने के लिए बुलावा ही इसलिए आता है क्यूंकि मैं हिंगलिश में लिखता हूँ. मैं शायद छोटे शहर और बड़े शहर के बीच में पड़ने वाली वो छोटी सी नदी हूँ जिसको पार किए बिना यात्रा संभव नहीं है.
हिंदीजंक्शन : बेस्टसेलर. आपको नहीं लगता हिंदी प्रकाशक बाजारू प्रतिस्पर्धा की आड़ में मानक नीचे कर रहे हैं? या कम से कम बेस्टसेलर होने के लिए आपसी सर्वसम्मति (हो सकता है यह दुष्कर हो) से एक न्यूनतम आँकड़ा तय होना चाहिए?
दिव्य प्रकाश : हाँ, बिलकुल होना चाहिए. इंग्लिश fiction में 2012 में पाँच हज़ार कॉपी को बेस्टसेलर बोला जाता था. हिन्दी में भी कम से पाँच हज़ार के बाद ही बेस्टसेलर बोलना चाहिए. हिन्दी पब्लिशिंग इंडस्ट्री को एक साथ कम करने की जरूरत है जिसमें ओवरआल ग्रौथ की बात होनी चाहिए. एक सुरेन्द्र मोहन पाठक की तीस हज़ार किताब बिकने से या रविश कुमार की 15 हज़ार किताब बिकने से कुछ नहीं होने वाला. We should stop celebrating these numbers. बहुत कम हैं ये.
हिंदीजंक्शन : वर्तमान हिंदी प्रकाशन जगत पर कोई ऐसी खीज जो भड़ास के रूप में निकालना चाहेंगे?
दिव्य प्रकाश : किताब की मार्केटिंग पर भी पूरा फोकस रखा जाए. हर किताब अलग होती है तो उसकी मार्केटिंग का तरीका भी अलग होना चाहिए. असल में बहुत से पब्लिशर अभी भी दिमाग से अस्सी-नब्बे के दशक की दुनिया में ज़िन्दा है. मार्केटिंग के नाम पर यही प्लान होता है कि किताब के पोस्टर लग जाएंगे कुछ दुकानों पर.
असल में किताब की मार्केटिंग के नाम पर पब्लिशर एक इवेंट कर देते हैं जहाँ दो तीन वरिष्ठ साहित्यकार आकर तारीफ-तारीफ में लेखक की तुलना प्रेमचंद से कर देते हैं. हिन्दी के हर छोटे बड़े आयोजन में एक दो नए प्रेमचंद पैदा होते रहते हैं. सम्पूर्ण हिन्दी जगत ‘प्रेमचंद सिंड्रोम’ से ग्रसित है. हमें उससे आगे बढ्ने और सोचने की जरूरत है. हम कैसे नए पाठकों तक पहुंचे इस पर कितनी चर्चा होती है? बच्चा कॉमिक्स पढ़ने के बाद से सीधे इंग्लिश की चिकलेट किताबों पर migrate कर जाता है. इस पर चर्चा हम कब शुरू करेंगे?
हिंदीजंक्शन : ऐसे में अपने वर्तमान प्रकाशक हिन्द युग्म को आप कहाँ पाते हैं?
दिव्य प्रकाश : हिंदी में जो यह प्री-बुकिंग की शुरुआत हुई है, एक तरह से इसका श्रेय उन्हें ही जाता है. उदाहरण के तौर पर उन्होंने चार साल पहले किशोर चौधरी की किताब से प्री-बूकिंग की शुरुआत की थी. तब तक हिन्दी किताबें प्री-बुक नहीं की जाती थी. हालांकि 150 किताबें ही प्रीबुक हुई थीं, लेकिन आगे आने वाली कई किताबों के लिए ये स्टार्टिंग पॉइंट था. ये गेम चेंजर थी. इसके अलावा सोशल मीडिया को भी अपने हक में पूरी तरह इस्तेमाल करते हैं जिससे उनका तकनीकी पक्ष भी मजबूत प्रतीत होता है. नित नए प्रयोग, सूचना तकनीक का ख़ासा इस्तेमाल इत्यादि, यही उनकी विशेषता है.
और सबसे अहम बात यह कि पुस्तकों की खरीद-बिक्री का पूरा आँकड़ा पूर्ण पारदर्शिता के साथ अपने लेखकों से साझा भी करते रहते हैं. अन्यथा रोयल्टी एक ऐसा विषय है जो हिंदी प्रकाशन में दोहन का परिचायक है. दबी ज़बान से ही सही, कई लेखकों को आपने भी इसके बारे में बात करते सुना ही होगा.
कुल मिलाकर यूँ कहे कि यह लोग पुराने ढर्रे पर काम नहीं कर रहें. हालाँकि अन्य प्रकाशक भी चेतने लगे हैं जो अच्छी बात है.
हिंदीजंक्शन : TEDx भी आपके लिए एक पड़ाव था. फिर आगे भी कई नामी समारोह में शिरकत का मौका मिलता रहा. कोई ऐसा ‘मुकाम’ जिसके स्टेज पर जाकर संबोधित करने की लालसा अब भी है?
दिव्य प्रकाश : TEDx में हिन्दी में बोल लिए अब हावर्ड और गूगल हैड ऑफिस जाकर हिन्दी में बोलने का मन है. हजारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले!
हिंदीजंक्शन : यह ‘सन्डे वाली चिट्ठी’ का विचार कैसे आया? इसके पीछे कोई ख़ास वजह या बस यूं ही शुरू किया गया एक साप्ताहिक स्तंभ जो फेसबुक पर साझा करते हैं?
दिव्य प्रकाश : बस ऐसे ही. कोई प्लानिंग नहीं थी. कोई मुझे कहता कि जुलाई तक हर संडे चिट्ठी लिखनी है तो मैं हाथ खड़े कर देता लेकिन बस अपने आप होता गया. लोग ही मेल करके बताते गए इसपर लिखिए उसपर लिखिए. चिट्ठियों के nostalgia का नशा कुछ अलग ही है, बस उस नशे की आदत हो गयी थी. इसलिए कभी मैं करेंट टॉपिक पर ओपेन लेटर नहीं लिखता था.
हिंदीजंक्शन : कुछ स्वाभाविक प्रश्न. सबसे प्रिय लेखक और उनकी रचनाएँ ? कोई ऐसा लेखक जिनसे अपना नाम बदलना चाहेंगे. जैसे काश कि मैं ‘धर्मवीर भारती’ होता?
दिव्य प्रकाश : हिन्दी में राही मासूम रज़ा और मनोहर श्याम जोशी साब. कोई एक रचना प्रिय नहीं है. हमें लेखक की सारी रचनाएँ पहले से आखिरी तक पढ़नी चाहिए. ऐसा खयाल कभी नहीं आया कि काश में ये होता या वो होता. मैं थोड़ा-थोड़ा सब कुछ होकर भी अपनी आवाज़ ढूँढना चाहता था.
हिंदीजंक्शन : ‘Terms & Conditions Apply’ और ‘मसाला चाय‘ विभिन्न कहानियों का संकलन है इसलिए उनके किरदार और नाम भी अलग-अलग हैं. परन्तु ‘मुसाफ़िर Cafe’ के पात्रों का नाम आपने धर्मवीर भारती के ‘गुनाहों के देवता’ से लिया है – सुधा और चंदर. कोई ख़ास वजह?
दिव्य प्रकाश : पश्चिमी साहित्य में थोड़ा हम आगे झाँके तो पाएंगे कि वहाँ पात्रों के नाम आगे बढ़ाने की अच्छी परंपरा है. हिंदी में इसका लोप है. ‘मुसाफ़िर Cafe’ की कहानियों को देखें तो उसके हिसाब से पात्रों के नाम थोड़े पुराने भी लगेंगे. परन्तु इसका एकमात्र कारण अपने प्रिय लेखक को सम्मान देना था. मैंने आदर भाव से महज़ उनके पात्रों का नाम उधार लिया है, कहानी पूर्णतः अलग है. मेरी कहानियों के माध्यम से जितनी बार भी सुधा और चंदर की चर्चा होगी, भारती जी का नाम भी लिया जाता रहेगा. यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी. मैं बस इस सम्मान सूचक प्रथा को आगे बढ़ाना चाहता हूँ.
हिंदीजंक्शन : अगली पुस्तक किस क्षेत्र से होगी? पोपुलर लेखन से इतर गंभीर साहित्य की ओर भी जाने का कोई विचार?
दिव्य प्रकाश : ये धारणा कि पोपुलर और गंभीर अलग है, ये हिन्दी का सबसे बड़ा फ़्राड है. गंभीर शब्द ही इतना बोरिंग और भारी है कि मुझे डर लगता है. कमाल की बात है कुछ गिने चुने अपने लिखे को गंभीर बोलते हैं आप उस गंभीर को पढ़िये और देखिये कितना उबाऊ है. ये गंभीर वाली दुनिया इतनी छोटी है कि इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. मुझे तो नहीं लगता कि जब श्रीलाल शुक्ल ने राग दरबारी लिखी थी तब उनसे किसी ने पूछा होगा कि ये पोपुलर है या गंभीर. गंभीर साहित्य एक बहत बड़ा फ़्राड है. जो किताब नहीं बिकती उसको गंभीर साहित्य बोल देना भी फ़ैशन में है.
हिंदीजंक्शन : आपका इशारा ‘नई वाली हिंदी’ की एक खेप खड़ी करने की तरफ़ तो नहीं? और यह ‘लुगदी साहित्य’ का आधुनिक अवतार तो नहीं जिसके तहत गुलशन नंदा, सुरेन्द्र मोहन पाठक, वेद प्रकाश शर्मा इत्यादि जैसे लेखकों ने अपना नाम चमकाया था?
दिव्य प्रकाश : सुरेन्द्र मोहन पाठक या वेद प्रकाश शर्मा और हंस पत्रिका के बीच में भी एक दुनिया है. ऐसी दुनिया है जो अपने गली मोहल्ले कॉलेज और ऑफिस की कहानियाँ कह रही है. लुगदी साहित्य की अपनी यूटिलिटि थी और है, लेकिन इस बीच जितनी तेज़ी से दुनिया बदली उतनी ही तेज़ी से पढ़ने वाले भी बदले. लेकिन क्या हम पढ़ने वाले के प्रोफ़ाइल से हिसाब से अपनी कहानियाँ बदल पाये?
दिक्कत क्या है कि एक दुनिया ऐसी है जहां अभी भी हीरो ऐसा है जिसकी माँ बीमार है, बहन की दहेज की वजह से शादी नहीं हो रही और दूसरी तरफ पुलिसनुमा वाला डिटेक्टिव है. इन दोनों के बीच के दुनिया की कहानियाँ ‘नयी वाली हिन्दी’ के लेखक लिख रहे हैं और लोग पसंद कर रहे हैं.
हिंदीजंक्शन : लेखक बनने की चाह रखने वालों के नाम कोई संदेश?
दिव्य प्रकाश : बस यार ज़्यादा कोशिश मत करो रायटर ‘बनने’ की. जो जितनी ज़्यादा कोशिश करता है उसके लिए रस्ता उतना ही मुश्किल हो जाता है. जो हाथ में आए उसको पढ़ते जाओ. वो चाहे मनोहर कहानियाँ हो या अमिताभ घोष या पकोड़ी के नीचे वाला अखबार. स्टेशन पर, बस में, एयरपोर्ट पर, ऑटो में, पिक्चर हाल में – जहां भी हो सके लोगों को देखो, समझो और जानो. एक-आध बार दिल तुड़वाओ! एक-आध बार प्यार में पड़ो. बिना प्लान किया ट्रिप पर जाओ. बिना रिज़र्वेशन ट्रेन में चढ़ो. थोड़ा सा impractical बनो. रात भर जग के देखो. रात भर रो कर देखो. रात भर दोस्तों के साथ हँस कर देखो. बस एक आखिरी बात एक मिनट के लिए सोचो कि तुम्हारा जो पोता या पोती होगी और वो तुमसे कभी पूछे कि दादा जी आपने लाइफ में क्या किया तो या तो तुम्हारे पास जवाब सॉलिड होना चाहिए. नहीं तो तुम्हारी किताब सॉलिड होनी चाहिए. सालों बाद पोता को ये बोलने का मौका नहीं मिलना चाहिए ‘क्या दादा जी आपकी जिंदगी तो झंड थी’!
हिंदीजंक्शन : कोई रही-सही बात जो पाठकों के सम्मुख रखना चाहेंगे?
दिव्य प्रकाश : पहली बात ये कि केवल इसलिए हिन्दी के पाठक मत बनिए क्यूंकि आप लिखना चाहते हैं. लेखक बनने वाली बात होगी तो एक दिन अपने आप पढ़ते पढ़ते आप खुद लिखना शुरू कर देंगे. जिस भाषा के आप लेखक होना चाहते हैं उसकी कम से 50-60 किताबें पढ़ तो लीजिये उसके बाद सोचिएगा लिखने की. दूसरी बात कि केवल हिन्दी ही मत पढ़िये दुनिया भर के लेखकों को पढ़िये.
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नोट : प्रस्तुत उत्तर लेखक के अपने विचार हैं.
Topics Covered : Divya Prakash Dubey Interview, Terms & Conditions Apply, Masala Chai, Musafir Cafe, Hindi Books & Authors