बादलों से जहाँ तक बिजली उत्पन्न करने प्रश्न है, तो इसका उत्तर ‘हाँ’ है। परंतु यह प्रश्न विज्ञान से अधिक व्यावसायिक दृष्टिकोण से ज्यादा महत्वपूर्ण है जहाँ व्यावहारिकता का अपना स्थान है। इस संदर्भ में इसका उत्तर अभी के तकनीकी उपलब्धता को लेकर ‘ना’ ही है।
पढ़िये क्यों और कैसे
बादल और बिजली का इतिहास
सदियों से बादलों और बिजली की अपनी अलग कहानी रही है – कहीं मिथकों में तो कहीं सदियों से चली आ रही वैज्ञानिक अन्वेषण में। जब विद्युत और उससे जुड़ी जानकारी अपने शैशवकाल में थी, मशहूर वैज्ञानिक एवं आविष्कारक बेंजामिन फ़्रेंकलिन ने एक बार आकाशीय बिजली और विद्युत में संबंध स्थापित करने हेतु एक जोख़िम भरा प्रयोग किया था। इसके लिए उन्होने रेशम से बना पतंग जिसमे ऊपरी छोर पर धातु लगा था और नीचे धागे पर चाबी लटक रही थी, बारिश के मौसम में उड़ाया। उन्होने पाया कि चाबी को छूने से विद्युत का प्रवाह महसूस हो रहा तथा वो इससे लेयडेन जार को भी चार्ज कर सकते हैं। उसके बाद जो भी हुआ, आज एक इतिहास है!
परंतु आज भी बादलों से बिजली बनाने तथा इसके उपभोग की धारणा आम जनों को भी उतना ही आकर्षित करता है जितना नए वैज्ञानिकों को।
आइये जानते हैं अब इसमे क्या-क्या अड़चने है…
वज्रपात और इसकी प्रलयंकारी ऊर्जा
एक वज्रपात कितना शक्तिशाली होता है इसका अनुमान हम निम्न तथ्यों से लगा सकते हैं:
- वज्रपात का तापमान (प्रति लाइटेनिंग बोल्ट) लगभग 30,000 डिग्री सेल्सियस होता है (पानी मात्र 100 डिग्री पर उबलता है। खुद सूर्य के सतह का तापमान भी 5600-6000 डिग्री सेल्सियस ही होता है)
- इसमे औसतन 20,000-30,000 Ampere का करेंट होता है (हमारे घर में लगा बिजली का सॉकेट है वह 5-15 ampere का ही होता है)
- एक वज्रपात लगभग 10,00,00,000 वोल्ट लिये होता है (आपका मोबाइल फोन महज़ 3.7V बैटरी से चलता है और घर के इंवर्टर वाला बैटरी मात्र 18V का ही होता है। अन्य उपकरण 120-220V के बीच ही काम करते हैं)
अब उपर्युक्त तथ्य आपको विशाल तथा विस्मयकारी लग रहे होंगे। परंतु यह हमारी खपत के लिए अपर्याप्त है जिसका कारण कुछ और है।
अगर विद्युत तकनीक और वितरण की बात करें तो हमें इसमे प्रवाह (Current) अधिक और वोल्ट कम चाहिए होता है या उन्हे एक खास अनुपात में होना चाहिए। परंतु वज्रपात में इसके विपरीत होता है। वहीं यह किसी स्थायी समय के लिए ऊर्जा नहीं देता अपितु क्षणिक होता है – वह भी विशाल ऊर्जा के साथ।
फिर भी बिजली का उत्पादन करना ही है तो निम्न बिन्दुओं पर विचार करें:
कितनी बिजली बना पाएंगे हम?
एक सामान्य वज्रपात में लगभग 5 अरब जूल की ऊर्जा होती है जो लगभग 1,400 kWH के बराबर है। यहाँ हमने चार्ज के स्थानांतरण और संचयन में होने वाली क्षति को शून्य माना है।
रिपोर्ट के अनुसार एक वर्ष में कुल मिलाकर लगभग 3-4 अरब वज्रपात होते हैं। इनमे से 75% बादलों के अन्दर या अन्य बादलों के बीच होता हैं। शेष 25% वज्रपात ही ऐसे होते हैं जो भूमि पर गिरते हैं। इस गणना के अनुसार मात्र 7500 लाख ठनकों को ही उपयोग में लाया जा सकता है। अब अगर फिर से मान लें कि इसके द्वारा बनाई अथवा संचित की गयी बिजली के उत्पादन, स्थानांतरण तथा संचयन के सभी मानक शत-प्रतिशत रहे हों (100 प्रतिशत efficient) तब भी हम प्रतिवर्ष 1050000000000 kWh बिजली ही बना पाएंगे।
ताज़ा जानकारी के अनुसार अब अकेले वर्ष 2014 में बिजली की कुल खपत 21776088770300 kWh थी जो उर्पयुक्त तरीके से बनायी गयी बिजली से लगभग बीस गुना ज्यादा है। इस हिसाब से इतने ताम-झाम के बावजूद भी हम सालाना लगभग 17-18 दिनों के लिए ही पर्याप्त बिजली बना पाएंगे! और साल दर साल बिजली कि जो मांग बढ़ रही है वह अलग।
कितना खर्चीला होगा यह?
फिलहाल असली समस्या यहीं है।
अब वज्रपात से विद्युत उद्पादन को लेकर इस व्यवस्था में आने वाली लागत का अनुमान लगाते हैं।
भूमि पर गिरने वाले सभी ठनकों को पकड़ने के लिए हमे अत्यंत ऊंचे मीनारों का निर्माण करना होगा। अब इसमें फिर से कई समस्याएं हैं। पहला कि समस्त पृथ्वी पर इसका जाल बिछाना होगा (सागर में भी)। यहाँ तक कि एक मीनार की दूरी दुसरे मीनार से 1-2 किलोमीटर से अधिक न हो। ध्यान दें कि पृथ्वी का कुल क्षेत्रफल 510000000 किमी2 है। अर्थात्, करोड़ों मिनारों का निर्माण करना होगा। इसकी लागत तब और भी बढ़ जाएगी जब सागर या अन्य किसी दुर्गम स्थान पर इसे बनाना और खड़ा करना होगा। इसका दूसरा विकल्प फ्लोटिंग बलून हो सकता है परंतु वह भी उतना ही दुष्कर है।
कुल मिलाकर ऐसा कह सकते हैं कि इसके लिए न तो हमारे पास उपयुक्त संसाधन है और न ही इतना पैसा और न ही किसी भी दृष्टि से यह उपयुक्त है।
अब ऐसा भी नहीं है कि मिनारों का निर्माण किसी भी साधारण वस्तु से कर लिया जाए. एक वज्रपात करोड़ों वोल्ट का हो सकता है जिसे वहन करने के लिए उच्च कोटि के संवाहक की आवश्यकता होगी। इतना ही नहीं, वज्रपात अति सूक्ष्म समय के लिए होता है। अतः इसे संचित करने के लिए वर्तमान में उपलब्ध बैटरी पर्याप्त नहीं होगी जिन्हें चार्ज करने के लिए एक खास अवधि तक नियमित विद्युत धारा चाहिए। तात्कालिक क्षण के लिए मिल रही ऊर्जा के संचयन हेतु सुपरकैपसिटर का उपयोग करना होगा (जिनका इतनी मात्रा में ऊर्जा के लिए परीक्षण नहीं हुआ है और न ही हमारे पास वर्तमान में ऐसी कोई तकनीक विद्यमान है)।
साथ ही अन्य समस्या यह है कि वज्रपात सभी जगह एक समान नहीं होते – किसी क्षेत्र में कम तो कहीं अधिक। ऐसा भी हो सकता है कि जो घनी आबादी वाला क्षेत्र हो और जहाँ ऊर्जा कि खपत अधिक हो वहाँ भौगोलिक कारणों से कम वज्रपात होता हो। इसी के उलट, कम आबादी वाले या ऐसे क्षेत्र जहाँ कोई न रहता हो वहाँ वज्रपात बहुत ज्यादा होता हो। ऐसे में संचित की गयी ऊर्जा को वितरण अपने आप में एक अलग समस्या बनकर उभर सकती है। और ऐसा भी नहीं है कि इसके लिए मौजूदा आधारभूत संरचना का सीधा इस्तेमाल कर लिया जाये जो खासकर ए॰सी॰ पावर के लिए होता है (हालांकि सौर ऊर्जा के लिए सेंड-टू-ग्रिड की कहीं-कहीं शुरुआत हुई है, परंतु इसके लिए भी अलग उपकरण चाहिए)।
अंतिम विचार
इसे विज्ञान और तकनीक की दृष्टि से देखें तो यह फिर भी असंभव नहीं है। परंतु जहां व्यावहारिकता की बात आती है, यह हमारे रोज़मर्रा की ऊर्जा की आवश्यकता का समाधान कतई नहीं है। हमारे पास वैकल्पिक ऊर्जा के अन्य कई कारगर विकल्प भी है – जैसे सौर ऊर्जा। सूर्य पृथ्वी पर हमे 1 घंटे में उतनी ही ऊर्जा देता है जितना हम साल भर में अभी उपयोग करते हैं। विडम्बना यह कि आप जिन बादलों से बिजली बनाना चाहते हैं, वह भी सूर्य की ही देन है (वाष्पीकरण)!
लेख में जो भी आँकड़े तथा तथ्य दिये गए हैं, उनके स्रोत निम्न है:
https://en.wikipedia.org/wiki/Kite_experiment
http://www.benjamin-franklin-history.org/kite-experiment/
https://learn.weatherstem.com/modules/learn/lessons/36/02.html
https://data.worldbank.org/indicator/EG.USE.COMM.FO.ZS
https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_countries_by_electricity_consumption
http://skepticva.org/energy.skepticva.org/One-hour-of-sunshine.html
Topics Covered: Lightning & Electricity, Electrical Engineering, Science Question & Answer in Hindi, Can We Harness Electricity From Lightening?